बॉलीवुड हिट की गारंटी देने वाले थे ये अंडर-वर्ल्ड के किरदार, यह है वो 5 फिल्में जिन्होंने किया ये साबित

जैसा आपको पता है की हकीकत का अंडर-वर्ल्ड हो या फ़िल्मी दुनिया का , इसकी एक अलग ही दुनिया है, जहां गोली है, खून है, पैसा है, रूतबा है और रिश्ता भी है, लेकिन सब कानून के खिलाफ है। इस दुनिया की अपनी सत्ता रही है और हर तरह की बेईमानी का काम बेहद ईमानदारी से करने की कहानियां , खबरे सामने आती रहती  हैं।  ये दुनिया बहुत पहले दे चलती आ रही है , फिर चाये वो  राम युग हो या महाभारत का युग ।

जब इस दुनिया की कहानियों को सिनेमा ने रंग दिया तो खूब तालियां बजीं और खूब पैसे कमाए । अंडर-वर्ल्ड के असली किरदारों की कहानियां नए सिरे से ढूंढी जा रही हैं। फिल्म ‘रईस’ के बाद और लगभग दो साल के सन्नाटे के बाद चार ऐसी फिल्में आ रही हैं, जो किसी न किसी देसी डॉ.न की जिंदगी पर आधारित है। चार दशक से ज्यादा वकत पहले, पटकथा लेखक सलीम जावेद की जोड़ी ने ‘दीवार’ जैसी फिल्मों के जरिए हिंदी फिल्मों में डॉन या गिरोह के सरगना के जीवन को जिस तरह महिमा मंडित किया है, उससे फिल्म निर्माता बॉक्स ऑफिस पर इस थीम के सफल होने के प्रति आश्वस्त हो गए और ऐसी फिल्में बहुतायत से बनने लगीं। या यूं भी कहा जा सकता है कि एक तरह से गैंग-स्टर फिल्मों बॉक्स ऑफिस पर सफलता की गारंटी हो गईं ।

जिस फिल्म ने अमिताभ बच्चन को महानायक बनाया, उसी का उदाहरण लें। ‘दीवार’ फिल्म में अमिताभ बच्चन का किरदार सत्तर के दशक में पनपे माफिया डॉन हाजी मिर्जा मस्तान से प्रेरित है। वह शुरू में मुम्बई की गोदी पर कुली का काम करता था और वहां से उठकर सोने चांदी की तस्करी करने लगा। यह और बात है कि मस्तान का अंत फिल्म के नायक जैसा नहीं हुआ। फिल्मी पंडितों का कहना है कि फिल्मों में अंडरवर्ल्ड के चरित्रों का प्रवेश इसी फिल्म से हुआ। इसके बाद तो यह सिलसिला चल पड़ा ।

आपको बता दे की ऐसा नहीं है कि हाजी मिर्जा मस्तान का चरित्र सिर्फ ‘दीवार’ में ही इस्तेमाल हुआ है। एकता कपूर निर्मित ‘वन्स अपॉन ए टाइम इन मुम्बई’ में सुलतान मिर्जा ( हाजी मस्तान) का किरदार अजय देवगन ने निभाया है और इमरान हाशमी ने शोएब खान (दाऊद इब्राहीम) का। यह फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर सफल रही और इसी से प्रेरित होकर एकता कपूर ने ‘वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा’ भी बनाई।

महेंद्र उर्फ माया डोलस और उसके निशानेबाज साथी दिलीप बुवा ने 90 के दशक की शुरुआत में जबरिया वसूली को आम बात बना दिया था। ‘शूटआउट एट लोखंडवाला’ की सफलता ‘शूटआउट एट वडाला’ (2013) की प्रेरणा साबित हुई। दरअसल, ‘शूटआउट एट वडाला’ मुंबई पुलिस द्वारा अंडरवर्ल्ड के खिलाफ पहले पुलिस एनकाउंटर की कहानी है ये दोनों ही फिल्में सीरियल क्वीन एकता कपूर ने बनाई हैं ।

अगर मुंबई के सबसे अधिक रुतबे वाले इंसान हाजी मस्तान किसी चरित्र की प्रेरणा हो सकता था, तो मुंबई पर दो दशक यानी 1960 से 1980 तक राज करने वाला वरदराजन मुदलियार क्यों नहीं हो सकता है । फिरोज खान की ‘दयावान’ के नायक का चरित्र पूरी तरह वरदराजन मुदलियार के चरित्र पर आधारित था मुदलियार का मुख्य धंधा अवैध शराब का था, जिसकी कई भट्टियां उन दिनों मुंबई के उपनगरों में हुआ करती थीं लेकिन इस फिल्म में उसे तस्करी करते दिखाया गया है।

जब यह स्पष्ट हो गया कि अंडर-वर्ल्ड के चरित्रों पर बनी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट होती हैं, तो फिर ऐसी अनेकों फिल्में बनीं और मांजरेकर की ‘वास्तव’ के नायक रघु पर भी छोटा राजन का असर देखा जा सकता है।

गिरोहबाजी की फिल्मों का सही मतलब  रामगोपाल वर्मा ने समझाया है ‘सत्या’ (1999) और ‘कंपनी’ (2002) ने सारे आदर्श नियमों और एंटी-हीरो या विलेन के आस-पास के सिद्धांतों को ताक पर रख दिया। इन फिल्मों में कैमरा अंधेरी गलियों में ही नहीं, बल्कि अंधेरे चरित्रों पर भी घूमता है। ‘सत्या’ में भीखू म्हात्रे का किरदार भी अरुण गवली पर ही आधारित बताया जाता है।

आपको बता दे की मनोहर अर्जुन सुर्वे उर्फ मन्या सुर्वे कॉलेज का एक छात्र है, जो विद्या से प्रेम करता है। वह अपने सौतेले भाई भार्गव और अपनी मां के साथ रहता है। भार्गव एक स्थानीय गुंडा है। एक दिन उसका किसी दुसरे गुंडे से झगड़ा होता है, जो उसके हाथों मारा जाता है।  पुलिस इंस्पेक्टर अम्बोलकर मन्या को घटनास्थल पर मौजूद होने के कारण कॉलेज से गिरफ्तार कर जेल में डाल देता है, जहां भार्गव को एक गुंडा मार देता है और शेख मुनीर ( तुषार कपूर) मन्या को बचा लेता है। जुबेर का भाई दिलावर (सोनू सूद) उनकी खिलाफत करता है। तब मन्या शेख मुनीर और तीन अन्य के साथ अपना गिरोह बनाता है और मुंबई में इतना कहर बरपा कर देता है कि पुलिस को उसे रोकने के लिए रास्ता निकालना पड़ता है।

‘डैडी’ और ‘हसीना पारकर’ इस शृंखला की नवीनतम फिल्में थीं। दोनों  2017 में रिलीज हुईं। ‘डैडी’ मुंबई के डॉन और दगड़ी चाल के बादशाह अरुण गवली पर बनी है। एक बार फिर दर्शकों ने एक ‘गैंगस्टर’ को देखा, जो बाद में राजनीति में आया और मुंबई के चिंचपोकली इलाके से विधायक भी चुना गया। हालांकि, यह एक अलग मुद्दा है वास्तविक जीवन में अरुण गवली कहीं से कहीं तक भी गैंगस्टर नहीं लगता। अर्जुन रामपाल ने उसका किरदार बखूबी निभाया है। श्रद्धा कपूर ने हसीना के चरित्र को पर्दे पर जिया और काफी हद तक अपनी भूमिका के साथ न्याय करने में सफल रहीं।

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