लेखक, गीतकार, शायर और एक बेहतरीन डायरेक्टर है गुलज़ार साहब , इस फिल्म से गीतकार के बतौर मिला पहला ब्रेक
दिल की गहराईयों को छू लेते है गुलज़ार सहाब के शब्द:
भारतीय सिनेमा के मशहूर लेखक, गीतकार, शायर और डायरेक्टर है गुलज़ार सहाब।गुलज़ार एक ऐसे जीनियस हैं जिनकी कलम से निकला हर एक शब्द दिल की गहराईयों को छू जाते है। वो एक शब्द में न जाने कितनी बातें कह जाते हैं। चाहे फ़िल्मों में उनके लिखे बेहतरीन गाने हों या दिल को छू जाने वाली ख़ूबसूरत कविताएं, गुलज़ार साहब का जवाब नहीं है।
फ़िल्म ‘बंदिनी’ में गीतकार से मिला पहला ब्रेक
गुलज़ार का जन्म 18 अगस्त 1934 को पंजाब के झेलम ज़िले में स्थित दीना गांव में हुआ था।ये इलाक़ा अब पाकिस्तान में है। लेकिन सन 1947 के बंटवारे के बाद उनका पूरा परिवार अमृतसर आ गया और गुलज़ार साहब ने अपनी पढ़ाई दिल्ली से पूरी की। इसके बाद वे रोजी-रोटी के लिए पहुंचे मुंबई और फिर हमेशा के लिए यहीं के होकर रह गए। शुरुआत में उन्हें अपने जीवनयापन के लिए कार मैकेनिक का काम करना पड़ता था। काफी संघर्षों के बाद उन्हें 1963 में आई फ़िल्म ‘बंदिनी’ में गीतकार के तौर पर ब्रेक मिला। जिसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
लिकने की कला से बने भारत की आन, बान और शान
गुलज़ार साहब के पिता और भाई को उनका राइटिंग का काम करना पसंद नहीं था। लेकिन उन्हें बचपन से लिखने का बेहद शौक रहा। घर पर राइटिंग का काम करने पर डांट पड़ने की वजह से वे पडोसी के घर जाकर लिखा करते थे। लेकिन आज अपनी लिखने की इसी कला से वे भारतीय सिनेमा की आन, बान और शान बन चुके हैं।
लेखक, गीतकार और शायर के साथ-साथ डायरेक्टर भी थे
गुलज़ार साहब ने ‘तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी’, ‘तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिक़वा तो नहीं’, ‘आने वाला पल जाने वाला है’, ‘मुसाफ़िर हूं यारो’ जैसे मिठास भरे गाने हों या ‘चप्पा-चप्पा चरखा चले’, ‘बीड़ी जलाइले जिगर से पिया’ और ‘नमक इश्क़ का’ जैसे तड़कते-भड़कते गाने हो वो हर तरह के फ़न में माहिर हैं।गुलज़ार साहब केवल लेखक, गीतकार और शायर ही नहीं, बल्कि एक बेहतरीन डायरेक्टर भी रहे हैं। उन्होंने ‘मेरे अपने’, ‘आंधी’, ‘अंगूर’, ‘इजाज़त’, ‘परिचय’, ‘मौसम’, ‘लिबास’, ‘ख़ुशबू’, ‘नमकीन’, ‘मीरा’, ‘किनारा’ और ‘माचिस’ जैसी बेहतरीन फ़िल्मों बनाई है।
फ़िल्मी दुनिया में कदम रखने से पहल ही बदला अपना नाम
गुलज़ार साहब का असली नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा है। दरअसल, उन्होंने फ़िल्मी दुनिया में कदम रखने से पहले ही अपना नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा से गुलज़ार दीनवी रख लिया था।परिवार दीना नामक क़स्बे से होने के कारन उन्होंने अपने नये नाम में दीनवी जोड़ लिया था। हालांकि, बाद में उन्होंने अपने नाम से ‘दीनवी’ निकाल दिया और बस ‘गुलज़ार’ नाम से मशहूर हो गए।गुलज़ार का मतलब ऐसी जगह जहां गुलाबों/फूलों का बाग़ हो।
गुलज़ार सहाब ने की थी राखी से शादी
गुलज़ार साहब की पर्सनल लाइफ़ की बात करें तो उन्होंने सन 1973 में एक्ट्रेस राखी से शादी की थी। लेकिन ये शादी महज 1 साल के भीतर ही टूट गई थी।मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अलग होने के वाब्जूद भी दोनों ने तलाक नहीं लिया।इन दोनों की एक बेटी है मेघना गुलज़ार है। मेघना मशहूर बॉलीवुड डायरेक्टर हैं।
गुलज़ार सहाब को मिले चुके है ये पुरस्कार
गुलज़ार साहब को हिंदी सिनेमा में उनके महतवपूर्ण योगदान के लिए मिले थे।‘साहित्य अकादमी पुरस्कार (2002)’, ‘पद्म भूषण (2004)’, ‘अकादमी पुरस्कार (2008)’, ‘ग्रैमी अवार्ड (2010)’ और साल ‘2013 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ इन पुरस्कारों से नबाज़ा गया।