हिंदी सिनेमा के महान गायक मोहम्मद रफ़ी , जिनके गीतों के लोग आज भी है दीवाने

मखमली आवाज और हिंदी सिनेमा के महान गायक:

मखमली आवाज के मालिक और हिन्दी सिनेमा के इतिहास के महान गायक मोहम्मद रफी के गीतों के दीवाने उन्हें आज भी याद करते हैं। वो आज इस दुनिया में नहीं हैं मगर वो अपनी आवाज से करोड़ों दिलों में जिंदा हैं। उन्होंने अपने करियर में 7 हजार से अधिक गाने गाए है। हिन्दी सहित उन्होंने भारत के तकरीबन सभी क्षेत्रिय भाषाओं में गाने गाए है। यहां तक कि रफी साहब ने अंग्रेजी, फारसी , नेपाली और डज भाषाओं में भी गाना गाकर अपनी गायकी का जादू बिखेरा है।  रफी साहब को चार बार फिल्मफेयर अवार्ड और एक बार नेशनल अवार्ड से नवाजा गया था। साल 1967 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री अवार्ड से भी स्मानित किया है।

फकीर ने दिया था आशिर्वाद 

मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर, 1924 अमृतसर के पास कोटला सुल्तान सिंह में हुआ था। रफी एक मध्यवर्गीय परिवार से थे। उन्होंने महज सात वर्ष की छोटी सी उम्र से ही गाना शुरू कर दिया था।रफी साहब जब सात साल के थे तो वे अपने बड़े भाई की दुकान से होकर गुजरने वाले एक फकीर का पीछा किया करते थे। फकीर उधर से गाना गाते हुए जाया करता था। रफी साहब को उस फकीर की आवाज इतनी पसंद आई थी कि वो उसकी आवाज की नकल किया करते थे। एक दिन उनका गाना उस फकीर ने भी सुना। गाने के प्रति रफी की भावना को देखकर फकीर बहुत खुश हुआ और उसने रफी को आशीर्वाद दिया कि बेटा एक दिन तू बहुत बड़ा गायक बनेगा।

फिल्म रिलीज़ होने से पहले ही नौशाद साहब ने क्र दिया था ऐलान 

मोहम्मद रफी  20 साल की उम्र में मुंबई पहुंचे गए थे।उन्हें पहली बार एक पंजाबी फिल्म में गाना गाने का मौका मिला था। हालांकि यहां उनको वो शोहरत नहीं मिल पाई जिसके वो असली हकदार थे। दो साल बाद महान संगीतकार नौशाद के म्यूजिक से सजी फिल्म ‘अनमोल घड़ी’ में रफी को गाने के लिए बुलाया गया। गाने के बोल थे, ‘तेरा खिलौना टूटा’। उन्होंने यह गीत गाया तो नौशाद साहब ने फिल्म रिलीज होने से पहले ही ऐलान कर दिया था कि ये गाना जमकर चलेगा औऱ फिल्म इंडस्ट्री में रफी का बहुत नाम होगा।

रफी के गाने की वजह से हिट होती थी फिल्में

इसके बाद रफी की कामयाबी का सफर शुरू हुआ और ये बुलंदी तक पहुंचा। ‘शहीद’, ‘दुलारी’, बैजू बावरा’ जैसी फिल्मों ने रफी को मुख्यधारा में लाकर खड़ा कर दिया। उनकी टक्कर के गायक मिलने मुश्किल हो गए। ‘चौदहवीं का चांद’, ‘ससुराल’, ‘दोस्ती’, ‘सूरज’ और ‘ब्रह्मचारी’ जैसी फिल्मों के सुपरहिट होने में रफी साहब के गानों ने अहम भूमिका निभाई।

1 रुपये में भी गाया गाना

सदाबहार गायक मोहम्मद रफी काफी दयालु इंसान थे। कहा जात है कि वह कभी भी संगीतकार से ये नहीं पूछते थे कि उन्हें गीत गाने के लिए कितना पैसा मिलेगा। वह सिर्फ आकर गीत गा दिया करते थे और कभी-कभी तो 1 रुपये लेकर उन्होंने गीत गाया है। ये रफी की दिलदारी का प्रमाण है। वैसे तो रफी ने हरेक सिंगर के साथ गाना गाया है, लेकिन स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर के साथ उनकी जोड़ी कमाल की थी। दोनों के युगल गीत आज भी बड़े चाव से सुने जाते हैं।

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