आखिर क्यों कहते है मीना कुमारी को Tragedy Queen , जिसकी एक जलक को तरसते थे लोग जाने उनके असल जिंदगी के अनसुने किस्से
बॉलीवुड अभिनेत्री मीना कुमारी ‘ट्रैजेडी क्वीन’ :
बॉलीवुड में मीना कुमारी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। ”पाकीजा, मेरे अपने, बैजू बावरा, और दिल अपना प्रीत पराई जैसी तमाम फिल्मों में उनके बेजोड़ अभिनय को देखा जा सकता है”। एक दौर था जब लोग उनकी एक झलक पाने को तरसते रहते थे। दुर्भाग्य से लोगों के चेहरे पर मुस्कान बांटने वाली यह अदाकारा असल जिंदगी में प्यार को तरस गईं और ‘ट्रैजेडी क्वीन’ के रूप में आज भी हमारी यादों में जीवंत है।
‘पाकीजा और बैजू बावरा’ जैसी बड़ी हिट फिल्में दीं
मीना कुमारी बेहद छोटी थीं जब एक फिल्म की शूटिंग के दौरान उनके पिता अली बख्श उन्हें साथ लेकर अशोक कुमार के पास पहुंचे। अली बख्श फिल्मों में छोटे मोटे किरदार निभा चुके थे। इसलिए अशोक कुमार उन्हें पहचानते थे।अली बख्श ने अशोक कुमार को बताया कि ये उनकी बेटी मीना है। इस पर अशोक कुमार ने कहा कि ‘अभी तो छोटी हो तो बच्चों वाले रोल करो जब बड़ी हो जाओगी तब मेरी हिरोइन बनना’।
फिल्म ‘तमाशा’ (1952) से फ़िल्मी करियर की शुरआत
इतना कहने के बाद अशोक कुमार सहित वहां मौजूद सभी लोग हंस पड़े। उस दिन भले अशोक कुमार ने ये बात मजाक में कही थी। मगर ये बात तब सच हुई जब बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘तमाशा’ (1952) में मीना को कास्ट किया गया और उनके सह अभिनेता के रूप में थे अशोक कुमार और देव आनंद। थे । आगे चलकर उन्होंने ‘परिणीता’ (1953), ‘बंदिश’ (1955), ‘शतरंज’ (1956), ‘एक ही रास्ता’ (1956), ‘आरती’ (1962), ‘बहू बेग़म’ (1967), ‘जवाब’ (1970) और ‘पाक़ीज़ा’ (1972) में भी दोनों ने साथ काम किया। इस तरह मीना कुमारी अशोक कुमार की करीबी हो गयी थीं।
मीना कुमारी के साथ कई अभिनेताओं का नाम जुड़ा
मीना कुमारी के साथ कई अभिनेताओं का नाम जुड़ा। ‘बैजू बावरा’ में उनके सह अभिनेता ‘भारत भूषण’ भी उनके प्रेम में पड़े। इजहार भी किया मगर जवाब ना में मिला। कहते हैं हर किसी को बिना परवाह किसी परवाह के किसी को भी दो टूक जवाब दे देने वाले राजकुमार भी मीना कुमारी के सामने सुन्न पड़ जाते थे। दरअसल वो मीना कुमारी के इश्क में इस तरह से डूबे हुए थे कि मीना के सामने अपने संवाद भूल जाते थे।
‘कमल अमरोही’ के प्यार की दीवानी थी मीना कुमारी
मीना के दिल पर तो सिर्फ एक ही नाम था और वो नाम था कमाल अमरोही का। कमल के इश्क का नशा मीना के दिल ओ दिमाग पर इस तरह से छाया हुआ था कि उन्होंने शादीशुदा अमरोही की दूसरी बीवी बनना भी कुबूल किया।कमल अमरोही मीना कुमारी से इस तरह प्यार करते थे कि उनसे होने वाली हर मुलाकात में वो उन्हें फूल भेंट करते। लेकिन शादी के कुछ समय बाद ही मीना को ये अहसास हो गया कि उनकी मां और नानी की तरह उन्हें भी मोहब्बत रास नहीं आने वाली।अंतत: दोनों का रिश्ता टूट गया ।
‘हीमैन’ धर्मेन्द्र ने ली एंट्री
मीना कुमारी टूट रही थीं कि तभी उनके जीवन में जमले जट्ट ने एंट्री मारी। हीमैन धर्मेन्द्र ने फिल्म ‘फूल और पत्थर’ (1966) में पहली बार मीना कुमारी के साथ काम किया। कहते हैं कि काम से पहले धर्मेन्द्र इतने नर्वस थे कि हर किसी से मीना कुमारी के मिजाज के बारे में पूछते रहते थे। कईयों ने तो उन्हें बताया कि मीना कुमारी के साथ कम करने वालों का अभिनय उनकी परछाईं तले दब जाता है। हर किसी से मीना कुमारी के बारे में अलग अलग तरह के किससे सुन कर धर्मेन्द बहुत नर्वस थे लेकिन जब उनकी मुलाकात मीना कुमारी से हुई तो मीना कुमारी ने उनके साथ बहुत अच्छा बर्ताव किया और उनकी प्रशंसा भी की। फिल्म इंडस्ट्री में जगह बनाने के लिए प्रयास कर रहे धर्मेंद्र को मीना जैसी स्थापित अभिनेत्री का सहारा मिला।
हीमैन धर्मेन्द्र के साथ चर्चा में रहा मीना कुमारी का रिश्ता
मीना कुमारी के साथ तीन साल के संबंध में धर्मेंद्र ने इंडस्ट्री में अपनी मजबूत छवि बना चुके थे। अब उन्हें मीना के सहारे की उन्हें जरूरत नहीं थी। दोनों ने आखिरी बार फिल्म 1968 में ‘आई चंदन का पालना’ में काम किया। अब धर्मेद्र पर मर मिटने वाली हीरोइनों की कमी नहीं थी। बस फिर क्या था किस्मत ने मोहब्बत के साथ मिल कर फिर एक बार मीना कुमारी को धोखा दे दिया। इसके बाद मीना पूरी तरह से नशे की आदी हो गयीं। 1956 में शुरू हुई फिल्म ‘पाकीज़ा’ 14 साल के लम्बे इंतजार के बाद 4 फरवरी 1972 को रिलीज हुई। ये फिल्म खूब चली लेकिन अफ़सोस की इस सफलता को देखने के लिए मीना कुमारी जीवित नहीं रहीं। उन्होंने 31 मार्च 1972 को हमेशा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं थीं।
अपने ज़माने में 10000 की मोटी फ़ीस लेने वाली मीना कुमारी अपने अंतिम समय में एक दम कंगाल हो गयी थीं। आखिरी दिनों में एक फ्लैट और एक गाड़ी के सिवाय उनके पास और कुछ न बचा था।