काजोल ने इस फिल्म के लिए था बड़ा रिस्क, अब नहीं चाहती बने इसका सीक्वल
डिजिटल और सैटेलाइट के दौर से पहले हिंदी सिनेमा में फिल्मों की कामयाबी उनके बॉक्स ऑफिस पर इस दबदबे से आंकी जाती थीं कि वे सिनेमाघरों मे कितने दिनों तक चलीं। शानदार सौ दिन, 25 हफ्ते पूरे होने पर सिल्वर जुबली और 50 हफ्ते पूरे होने पर गोल्डन जुबली मनाने का सिलसिला खूब चला। सौ करोड़ रुपये की कमाई के आंकड़े पर इतराने का चलन तब आया नहीं था और साल 1997 में जब निर्माता निर्देशक यश चोपड़ा की फिल्म ‘दिल तो पागल है’ ने 71 करोड़ रुपये की कमाई की तो ये भी एक बहुत बड़ा रिकॉर्ड माना गया। इस साल कमाई के मामले में निर्देशक राजीव राय की फिल्म ‘गुप्त’ पाचवे नंबर पर रही थी। लेकिन इस साल की चौंकाने वाली कामयाबी मिली फिल्म ‘गुप्त’ को । बॉबी, काजोल और मनीषा कोइराला तीनों ने मिलकर ऐसा खेल परदे पर खेला कि जमाना भी बस गाता रह गया, ‘गुप्त, गुप्त, ये है गुप्त गुप्त…!’
बॉबी से पहले अक्षय और सनी के नाम
फिल्म ‘गुप्त’ की कहानी लिखते समय इसके लेखक, निर्दशक राजीव राय के दिमाग में लीड रोल के लिए दो नाम थे, अक्षय कुमार और सनी देओल। राजीव राय ने कहानी का जिक्र अक्षय कुमार से भी किया और सनी देओल से भी। सनी देओल ने ही राजीव को सलाह दी कि ये फिल्म उन्हें बॉबी देओल के साथ बनानी चाहिए क्योंकि उनकी पहली फिल्म ‘बरसात’ तब बस रिलीज ही होने वाली थी और बॉबी के करियर की दूसरी फिल्म के लिए ये कहानी सनी को परफेक्ट लगी। इसलिए उन्होंने बॉबी देओल को साइन करके फिल्म की शूटिंग 1996 के शुरू की। फिल्म में सबसे पहले बॉबी के साथ साइन हुई हीरोइन थीं रवीना टंडन। रवीना के साथ बॉबी का फोटोशूट भी कराया गया जो फिल्म के टीजर के तौर पर कुछ जगहों पर छपा भी। लेकिन, तभी ‘बरसात’ के आखिरी शेड्यूल में बॉबी देओल अपनी टांग तुड़वा बैठे।
इस उपन्यास पर बनी है कहानी
फिल्म ‘गुप्त’ की कहानी बहुत कुछ 1976 में प्रकाशित अंग्रेजी उपन्यास ‘गुड चिल्ड्रेन डोंट किल‘’ के आसपास की कहानी है। काजोल को फिल्म में जिस तरह पेश किया गया, वह पूरा आइडिया राजीव राय का ही था। शब्बीर बॉक्सवाला ने सह पटकथा लेखक के रूप में इस पूरे विचार को पूरी फिल्म में बुन दिया। काजोल ने जब ये फिल्म साइन की तो वह ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ की कामयाबी में झूम रही थीं। उन्होंने अपने करियर का ये बड़ा रिस्क लिया और ‘डीडीएलजे’ में फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड जीतने के बाद इस फिल्म में फिल्मफेयर का बेस्ट विलेन अवार्ड जीतकर उन्होंने अपनी काबिलियत की चमक चारों तरफ बिखेर दी।
बेस्ट विलेन अवार्ड मिला था काजोल को
काजोल से इस किरदार पर अब भी बात करो तो वह चहक उठती हैं। वह मानती हैं, ‘फिल्म ‘गुप्त’ में इशा दीवान का किरदार करना एक बहुत बड़ी चुनौती थी और करियर के लिहाज से बहुत बड़ा खतरा भी। लेकिन, लाइफ मे थोड़ा रिस्क तो लेना ही चाहिए।’ काजोल को कंफर्ट जोन से बाहर जाकर कुछ अलग करना शुरू से पसंद रहा है। हां, ये वह बिल्कुल नहीं मानतीं कि गुप्त जैसी फिल्म का भी कोई सीक्वेल बन सकता है। वह तो यहां तक कहती हैं कि उन्होंने जितनी भी फिल्में अब तक अपने करियर में की हैं, उनमें से किसी का ना तो रीमेक होना चाहिए और न ही उसकी सीक्वेल बननी चाहिए।
ये मांझे कलाकार थी फिल्म में
फिल्म के सहायक कलाकारों के लिए काबिल अभिनेताओं की पूरी लाइन लगा दी राजीव राय ने। फिल्म में राज बब्बर से लेकर परेश रावल, शरत सक्सेना, प्रेम चोपड़ा, रजा मुराद, सदाशिव अमरापुरकर, ओम पुरी, कुलभूषण खरबंदा, दलीप ताहिल, प्रिया तेंदुलकर और मुकेश ऋषि के अलावा तमाम कलाकार ऐसे रहे जिन्होंने अपने अपने छोटे लेकिन असरदार किरदारों में जान डालने में कसर नहीं छोड़ी।
रिलीज से पहले ही हिट हो गया संगीत
फिल्म ‘गुप्त’ का एक और विनिंग प्वाइंट रहा इसका म्यूजिक। संगीतकार जोड़ी कल्याणजी आनंदजी की विरासत संभालने वाले विजू शाह ने राजीव राय की पिछली तीनों फिल्मों ‘विश्वात्मा’, ‘त्रिदेव’ और ‘मोहरा’ की तरह इस फिल्म का संगीत भी उस वक्त की युवा पीढ़ी को ध्यान में रखकर तैयार किया। राजीव राय और विजू शाह ने जोड़ी बनाकर एक साथ लगातार चार हिट फिल्में देने का हिंदी सिनेमा में अपनी तरह का अनोखा रिकॉर्ड बनाया। उन दिनों फिल्मों के गानों के कैसेट की पायरेसी खूब होती थी, इसके बावजूद गुप्त के गानों के कैसेट खूब बिके। विजू शाह को फिल्म के बैकग्राउंड के लिए फिल्मफेयर का पुरस्कार मिला। काजोल और वीजू शाह के अलावा इस फिल्म के लिए राजीव राय को बेस्ट एडिटिंग का फिल्मफेयर अवार्ड मिला।