राज कपूर ने गुलशन राय को कसा था ताना , दोस्त ने बनाया निर्माता
इस फिल्म को हो गए है 50 साल से ज्यादा:
सिनेमा की ऐसी कृतियां जो समय बीतने के बाद भी न सिर्फ अपनी चमक बनाए रखती हैं, बल्कि बदली परिस्थितियों में भी जिनके कथानक पुराने नहीं होते, वे कालजयी फिल्म कहलाती हैं। ऐसी ही एक कालजयी फिल्म की रिलीज को 50 साल से ज्यादा चुके है। फिल्म का नाम है, ‘जॉनी मेरा नाम’ और ये पहली फिल्म है जिसने हिंदी सिनेमा के इतिहास में हर वितरण क्षेत्र में 50 लाख रुपये या उससे ज्यादा का कारोबार किया। ये उन दिनों की बात है जब सिनेमा हाल का टिकट 50 पैसे, डेढ़ रुपये और ढाई रुपये का होता था। फिल्म ‘जॉनी मेरा नाम’ साल 1970 में नवंबर में रिलीज हुई और इसी के अगले महीने रिलीज हुई शो मैन राज कपूर की फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ न सिर्फ दोनों फिल्मों के नाम की ध्वनियां एक जैसी हैं बल्कि इनके बनाने के पीछे का किस्सा भी काफी दिलचस्प है।
राज कपूर के कसा था ताना
फिल्म ‘जॉनी मेरा नाम’ के निर्माता हैं गुलशन राय। बतौर निर्माता ये उनकी पहली फिल्म रही। गुलशन राय के फिल्म निर्माता बनने का किस्सा भी बहुत रोचक है। वह पहले नवकेतन फिल्म्स की फिल्में वितरित किया करते थे और देव आनंद के काफी करीबी भी थे। पार्टी में राज कपूर ने उन पर यह तंज कस दिया कि फिल्म वितरक विशुद्ध कारोबारी लोग होते हैं और उन्हें फिल्ममेकिंग की कला की न तो समझ होती है और न ही उन्हें इन सबमें पड़ना चाहिए। बात गुलशन राय के दिल को छू गई। दिल की बात उन्होंने अपने मित्र को बताई और देव आनंद ठहरे दोस्ती पर मर मिटने वाले तो उन्हेने गुलशन को फिल्म निर्माता बनाने का फैसला कर लिया और अपनी कंपनी यानी नवकेतन फिल्म्स की पूरी टीम को फिल्म ‘जॉनी मेरा नाम’ बनाने में लगा दिया।
देव आनंद और हेमा मालिनी की पहली बार बनी जोड़ी
फिल्म ‘जॉनी मेरा नाम’ को कालजयी फिल्म बनाने वाले इस फिल्म में तमाम अवयव हैं। देव आनंद और हेमा मालिनी की जोड़ी को तो लोगों ने इस फिल्म में हाथों हाथ लिया ही, फिल्म की कामयाबी ने दोनों की जोड़ी के लिए एक ऐसा रास्ता खोल दिया जिस पर चलकर दोनों ने आधा दर्जन फिल्में साथ कीं। सीआईडी इंस्पेक्टर के रोल में देव आनंद का किरदार विजय आनंद ने बहुत गहराई से किया है। विलेन के गिरोह में शामिल होने के लिए इस किरदार को जो कुछ करना पड़ता है उससे लोगों की जान भी जाती हैं, लेकिन पटकथा लिखी इतनी होशियारी से गई है कि इन कत्ल के छींटे भी हीरो के दामन पर आ नहीं पाते। विजय आनंद ने समय बदलने के लिए भी स्टॉप फ्रेम का बहुत खूबसूरत इस्तेमाल किया है।
फिल्म का संगीत भी है कमाल का
इस फिल्म में इसके लीड सितारों का अभिनय तो शानदार है ही, फिल्म का संगीत भी कमाल का है। राजेंद्र कृष्ण और इंदीवर के गीतों को संगीतकार जोड़ी कल्याणजी आनंदजी ने बहुत ही सुरीली धुनों में ढाला है। फिल्म के दो गाने बहुत ही बेहतरीन हैं, ‘पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले, झूठा ही सही’ और ‘ओ मेरे राजा’। इन दोनों गानों का फिल्मांकन भी निर्देशक विजय आनंद के जैसा किया है, वह एक मिसाल है।उस समय में बिहार जैसे इलाकों में शूटिंग का इंतजाम करना आसान नहीं था लेकिन जो आसान हो, उसका विजय आनंद की फिल्म में काम ही क्या। ‘पल भर के लिए’ गाने में हेमा मालिनी जो इस गाने पर ‘लल्ल लल्ल ला लल्लल ला लल्ललल्ला’ करते सुनाई देती हैं, वह स्वर उषा खन्ना का है जो आगे चलकर बहुत बड़ी संगीतकार बनीं। लता मंगेशकर के गाए फिल्म के दोनों सोलो गाने भी सुपर डुपर हिट रहे, ‘छुप छुप मीरा रोए दर्द न जाने कोए’ और ‘बाबुल प्यारे…’।