बाबिल खान की ये डेब्यू फिल्म जो 40’s के परिवेश में बुनी गई है , आप भी जाने इसकी कहानी
40’s के परिवेश में बुनी फिल्म ‘कला’:
अनविता दत्त की फिल्म ‘कला’। इस फिल्म की कलात्मकता, रचनात्मकता और एक औरत के नजरिए पेश की गयी कहानी की संवेदनशीलता की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम होगी। 40’s के परिवेश में बुनी गयी ‘कला’ की कहानी को जिस शिद्दत से लिखा और फिल्माया गया है, उसकी मिसाल हिंदी सिनेमा में कम ही देखने को मिलती है।
‘कला’ की कहानी
‘कला’ के जरिए औरत और मर्द के बीच फर्क करने वाली सोच, लड़कों को हर तरह की छूट देकर लड़की की ख्वाहिशों को सामाजिक व निजी सलाखों के पीछे धकेल देने की फितरत को भाई-बहन की ऐसी संगीतमय कहानी के जरिए पेश किया गया है। जिसका अंदाज-ए-बयां हैरत में डालने वाला साबित होता है।‘कला’ में दर्शायी गयी मर्दवादी सोच के दायरे में घुटनेवाली एक गायिका की कहानी हमारे समाज पर एक तीखी टिप्पणी भी है।‘कला’ में ये भी दिखाया गया है कि कैसे एक मां अपने बेटे को तवज्जो देते हुए गायिकी के उसके अरमानों में अपनी खुशियां ढूंढती है मगर अपनी बेटी की गायिकी से जुड़ी वैसी ही ख्वाहिशों को कुचलने में तनिक भी संकोच नहीं करती है।अगर फिल्म में अभिनय की बात की जाए तो एक हैरान-परेशान नायिका के तौर पर तृप्ति डिमरी ने अपनी अधूरी इच्छाओं, गायिका बनने की अपनी ख़्वाहिशों और नामचीन हो जाने के बाद भी सुकून से ना जी पाने से जुड़े जज्बातों को बड़ी ही खूबी के साथ पेश किया है।
बाबिल खान ने किया फिल्म से डेब्यू
एक अभिनेता के तौर पर डेब्यू करने वाले बाबिल भी अपने किरदार को पूरी शिद्दत से जीते हैं। अभी कुछ समय तक लोग बाबिल की एक्टिंग में उनके मरहूम पिता इरफान का अक्स ढूंढने की कोशिश करेंगे। मगर बाबिल अपने डेब्यू के साथ ही इस बात को साबित करते हैं कि उनमें अपने पिता इरफान की तरह ही एक उम्दा अभिनेता बनने के गुण है। तृप्ति और बाबिल की मां के रोल में स्वास्तिका मुखर्जी, एक एक शोषणकारी और मगरूर संगीतकार के तौर पर अमित सियाल, एक गीतकार की भूमिका निभानेवाले वरुण ग्रोवर जैसे हर कलाकार ने अपने-अपने किरदारों को बखूबी निभाया है।
फिल्म को गहराई प्रदान करने में कामयाब साबित हुआ
40’s में गीत-संगीत के परिवेश में ‘कला’ को एक पीरियड फिल्म की सेटिंग देने के चलते इस बात का पूरा ख्याल रखा गया है कि फिल्म के तमाम गीत और फिल्म का संगीत उस दौर के परिवेश को जीवंत करने में मदद करे।उस दौर के संगीत को पुरकशिश अंदाज में पेश करने का श्रेय संगीतकार के तौर पर अमित त्रिवेदी को जाता है। जिन्होंने ‘कला’ के जरिए एक बार फिर से अपना कमाल दिखाया है। उनका संगीत फिल्म को गहराई प्रदान करने में कामयाब साबित होता है।
इसके जरिए दर्शाया गई फिल्म
फिल्म की सिनेमाटोग्राफी, आर्ट डायरेक्शनऔर एडिटिंग के जरिए फिल्म के एक-एक फ्रेम को इस कदर खूबसूरत बनाया गया है कि आंखों को एकबारबी यकीन नहीं होता है कि पर्दे पर जो कुछ दिख रहा है, उसे इतना दर्शनीय कैसे बना कर दिया गया है।
राइटर और डायरेक्टर अनविता दत्त की कहानियां
पहले ‘बुलबुल और अब ‘कला’। राइटर और डायरेक्टर अनविता दत्त की कहानियां अनोखे परिवेश में औरतों की सामाजिक और व्यक्तिगत कुंठाओं को जिस अनूठेपन के साथ और पुरजोर अंदाज में बयां करती हैं, वो बेहद काबिल-ए-तारीफ है। नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है फ़िल्म ‘कला’ को जरूर देखा जाना चाहिए।