महाराष्ट्र का सीएम बनने का सपना देखने वाले ये अभिनेता , जानिए इनकी दिलचस्प बातें
मराठी बैकग्राउंड से आए ये कॉमेडियन एक्टर:
फिल्मों में हास्य और हास्य कलाकारों की भूमिका बेहद अहम होती है। जब फिल्मों में कॉमेडी की बात आती है तो सबसे पहले दादा कोंडके का नाम आता है।दादा कोंडके कॉमेडियन के साथ गीतकार और लेखक भी थे। मराठी बैकग्राउंड से आए इस एक्टर को हिंदी सिनेमा में जो शोहरत मिली वो हर किसी को नसीब नहीं हुई।हिंदी फिल्मों में डबल मीनिंग डायलॉग्स या फिल्मों के नाम के चलन की शुरुआत दादा कोंडके ने ही की थी।
दादा कोंडके की फिल्मों के दो वर्ग थे
दादा कोंडके एक ऐसे कलाकार थे जो न सिर्फ निम्नवर्गीय दर्शकों के मनोरंजन का केंद्र थे, बल्कि गरीबों की दिनभर की मेहनत और थकान को अपनी एक्टिंग और डायलॉग के जरिये राहत देने वाले भी थे। इस निम्नवर्ग को भी पता था कि दादा कोंडके की फिल्म देखने जाएंगे तो हंसने की फूल गारंटी है।यह वो दौर था जब मराठी फिल्मों में कॉमेडी तो होती थी, लेकिन किसी को अंदाजा भी नहीं था कि दादा कोंडके की फिल्मों की वजह से कॉमेडी इस कदर बदल जाएगी। दादा कोंडके की फिल्मों के दो वर्ग थे। एक उनकी कॉमेडी को बहुत एंजॉय करता था तो दूसरा उसे फूहड़ मानता था।
25 से ज्यादा हफ्तों तक सिनेमाघरों में चली 9 फिल्मे
उस दौर में दादा कोंडके की 9 फिल्में 25 से ज्यादा हफ्तों तक सिनेमाघरों में चली थी। यह एक रिकॉर्ड के तौर पर गिनीज़ वर्ल्ड बुक में दर्ज है। डबल मीनिंग डायलॉग्स और कॉमेडी को बॉलीवुड ने भी हाथों-हाथ लिया।कुछ फिल्मों में आप गोविंदा को देखेंगे या ‘मैने प्यार किया’ और ‘हम आपके हैं कौन’ में काम करने वाले लक्ष्मीकांत बेर्डे को देखेंगे तो दादा कोंडके भी याद आएंगे। हालांकि इतना कुछ करने के बाद भी दादा कोंडके को सिनेमा में गंभीरता से नहीं लिया गया।
यह फिल्म हिंदी में हुई जमकर चर्चित
8 अगस्त 1932 में दादा कोंडके का जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम कृष्णा दादा कोंडके था। उनकी पहली फिल्म ‘तांबडी माती’1969 में रिलीज हुई थी। इसके बाद ‘चंदू जमादार’, ‘राम-राम गंगाराम’, ‘राम राम आमथाराम’, ‘एकटाजीव सदाशिव’, ‘तुमचं आमचं जमलं’ और ‘अंधेरी रात में दीया तेरे हाथ में’ रिलीज हुई। ये फिल्में मराठी में खूब चली, जबकि ‘अंधेरी रात में दीया तेरे हाथ में’ हिंदी में जमकर चर्चित हुई।
यह थी उनकी आखिरी फिल्म
90’s मे आई ‘सासरचंधोतर’ उनकी आखिरी फिल्म थी। इसका डायरेक्शन भी कोंडके ने ही किया था।दादा कोंडके का एक मराठी नाटक था। ‘विच्छा माझी पूरी करा’ यानी मेरी इच्छा पूरी करो। यह 1965 की बात है,इसी से कोंडके की पहचान बनी थी। इस नाटक को वसंत सबनिस ने लिखा था जो एक समाजवादी थे। कहानी एक राजा, उसके मूर्ख कोतवाल और एक सुंदर नर्तकी के बारे में थी। जो काफी पॉपुलर हुआ था, लेकिन कोंडके की खास विचारधारा के कारण इस नाटक का मैसेज कांग्रेस के विरोध में गया।
पहले ही बुकिंग करा चुके फिल्म को लगाने से किया था इस थिएटर ने मना
फिल्म सोंगाड्या जो 1971 में आई थी। यह फिल्म हिट रही थी। देव आनंद की जॉनी मेरा नाम की वजह से इस फिल्म को बॉम्बे के दादर स्थित कोहिनूर थियेटर ने लगाने से मना कर दिया था, जबकि वे इसकी पहले ही बुकिंग करा चुके थे।कोंडके शिव सेना के प्रमुख बाल ठाकरे के पास गए। इस पर शिव सैनिकों की फौज ने थियेटर के बाहर प्रदर्शन किया और हंगामा मचाया। इसके बाद फिल्म कोहिनूर में रिलीज हुई। इसके बाद वे शिवसेना की राजनितिक रैलियों में लोगों की भीड़ जुटाने का काम करने लगे। वह भीड़ जो उनकी दीवानी थी और उनकी हर सही-गलत बात पर हंसती, चीखती थी।
दादा कोंडके के बारे में ज्योतिषियों ने बताया
ज्योतिषियों ने दादा कोंडके के बारे में कहा था कि वे फिल्मों में सफल नहीं होंगे। लेकिन वे फिल्मों में स्टार बने। करोड़पति हुए एक गंदी चॉल से बॉम्बे के शिवाजी पार्क में शानदार पेंटहाउस तक पहुंचे। वे कहते थे कि मेरा सपना महाराष्ट्र का सीएम बनने का है, उन्हें लगता था कि बाल ठाकरे उन्हे यह मौका देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।