जाने भी यारो कैसे बन पायी एक बड़ी हिंदी सिनेमा की क्लासिक फिल्म

जाने भी दो यारो’ की कहानी थी भी उन लाखों, करोड़ों जैसी जो कुछ बन पाने की जुगत में दिन रात लगे रहते हैं। ये कहानी है एक अखबार के लिए काम करने वाले दो भोले भाले लेकिन ईमानदार फोटोग्राफरों की जिनके कैमरे में एक कत्ल कैद हो जाता है।

जाने भी दो यारो  कुंदन शाह द्वारा निर्देशितऔर एनएफडीसी द्वारा निर्मित1983 की भारतीय हिंदी भाषा की व्यंग्यपूर्ण ब्लैक कॉमेडी फिल्म है। यह भारतीय राजनीति, नौकरशाही, समाचार मीडिया और व्यापारमें व्याप्त भ्रष्टाचार पर एक काला व्यंग्य है, यह फिल्म भ्रष्टाचार पर सीधी चोट करती है. सिस्टम, बिजनेसमैन और मीडिया के गठजोड़ पर तीखा व्यंग्य होने के बावजूद, यह फिल्म सरकारी मदद से बन सकी. एनएफडीसी ने फिल्म-निर्माण के लिए सात लाख रुपए जारी किए।

उस दौर में कमर्शियल और आर्ट सिनेमा की बहस जोरों पर थी एक तरफ  श्रीदेवी और जीतेंद्र की जोड़ी का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा था वही सनी देओल के फिल्म जगत मैं धमाकेदार एंट्री , इसी साल मौत को हराकर वापस लौटे उस सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘कुली’ और इस साल जग्गू दादा की हीरो की एंट्री वही इसी साल एक फिल्म परदे पर आयी  ‘जाने भी दो यारो’ जब रिलीज हुई तो हाशिये पर रही लेकिन जब सिनेमाघरों से उतर गई तो हिंदी सिनेमा की क्लासिक फिल्म बन गई।

डार्क ह्यूमर श्रेणी की इस फिल्म का केंद्रीय बिंदु है: पावर ब्रोकर्स, पावर सेंटर्स का गठजोड़ और मीडिया से उनकी मिलीभगत. यह फिल्म इसलिए भी खास मानी जाती है कि, यह सिस्टम को परत-दर-परत खोलती चली जाती है. फिल्म को जमकर तारीफ मिली और अगले बरस इसके निर्देशक को बेस्ट डेब्यू फिल्म का इंदिरा गांधी अवॉर्ड मिला.

फिल्म के अंदर नसीरुद्दीन शाह,रवि बसवानी,भक्ति बर्वे,सतीश शाह,,ओम पुरी,पंकज कपूर,सतीश कौशिक,नीना गुप्ता,अशोक बंथिया जैसी मंजे हुए कलाकारों ने काम किया बहुत काम लोग जानते है की विधु विनोद चोपड़ा ने भी इसमें काम किया था ( दु:शासन के रूप में ) .

बॉलीवुड की कॉमेडी फिल्मों के नाम पर दर्शकों को अगर सहसा कोई फिल्म याद आती है, तो उसमें ‘जाने भी दो यारो’ का नाम जरूर शुमार होगा. खासकर महाभारत का द्रौपदी चीर-हरण वाला दृश्य.महाभारत के दृश्य को फिल्म के प्रमुख आकर्षणों में से एक माना जाता है, और इसके हास्य के लिए इसकी प्रशंसा की गई है। जिसके अंदर अनारकली वाले दृश्य को भी जोड़ दिया गया । ऐसी फिल्म दोबारा नहीं बनाई जा सकती. बना भी ली गई, तो रिलीज के साथ ही परेशानियों से घिर जाएगी.

नसीर के किरदार का नाम था-विनोद (विधु विनोद चोपड़ा से प्रेरित) और रवि वासवानी के किरदार का नाम सुधीर (सुधीर मिश्रा फिल्म के लेखक से प्रेरित). दरअसल यह राइटर्स के बीच का एक मजाक था.रवि वासवानी को इस फिल्म के लिए बेस्ट कॉमेडियन का फिल्मफेयर अवार्ड मिला.

यह फिल्म 2006 में भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में एनएफडीसी रेट्रोस्पेक्टिव का हिस्सा थी  ।

 

 

 

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