विनोद खन्ना के जीवन में रहा मनमोहन और उनके पुत्र नितिन मनमोहन का हाथ , आप कुछ अनसुने और रोचक किस्से

साल 1968 में फिल्म ‘मन का मीत’ से विनोद खन्ना ने अपना करियर शुरू किया। अपनी पहली फिल्म में उन्होंने विलेन का रोल निभाया था। विनोद को फिल्मो में लाने की श्र्य मनमोहन को जाता है चुकी वह खुद फिल्मो में खलनायक का  रोल किया करते थे पर विनोद दिखने में लम्बे व खूबसूरत थे उनको बाद में हीरो के रोले भी मिलने लगे । विनोद खन्ना को साल 1980 की दशक में दूसरे सबसे महंगे अभिनेता के रूप में जाना जाता है।

विनोद खन्ना ने करियर की चोटी पर आकर रिटायरमेंट ले लिया और आश्रम में जाकर रहने लगे। खबरों के मुताबिक, विनोद खन्ना अपनी मां की मौत के बाद पूरी तरह से टूट गए थे। इसी वक्त उनके दोस्त महेश भट्ट ने उन्हें आध्यात्म की ओर जाने की सलाह देते हुए ।

वे दोनों रजनीश के आश्रम गए कुछ समय बाद  महेश तो  आश्रम से  वापस आ गए  लेकिन विनोद वहीं रुक गए। उन्हें ओशो ने वहां रुकने के लिए मना लिया और फिर वह विनोद को अपने साथ अमेरिका ले गए। वह कुछ सालों के बाद उनको लगा की उनको फिल्मो में वापस आना है तो इस बार भी उनकी मदद करी मनमोहम के बेटे – नितिन मनमोहन इस फिल्म का नाम ‘इन्साफ’ था, जिसके निर्देशक ‘मुकुल आनंद’ थे। इस फिल्म में विनोद ने ‘अविनाश कपूर’ नाम का किरदार अभिनय किया था। इसके बाद उसी साल विनोद को फिल्म ‘सत्यमेव जयते’ में देखा गया था। इस फिल्म में उन्होंने पुलिस इंस्पेक्टर ‘अर्जुन सिंह’ नाम के किरदार को दर्शाया था।

साल 1988 में सबसे पहले विनोद ने फिल्म ‘दयावान’ में अभिनय किया था। इस फिल्म के निर्देशक ‘फिरोज खान’ थे और फिल्म में विनोद ने ‘शक्ति वेल्लु’ और ‘दयावान’ नाम के किरदारों को दर्शाया था। इस फिल्म में मुख्य किरदारों को विनोद खन्ना, माधुरी दीक्षित और फिरोज खान ने अभिनय किया था

विनोद खन्ना को आखरी बार फिल्म ‘एक थी रानी ऐसी भी’ में देखा गया था, जो की उनके दिहांत के बाद रिलीज़ हुई थी।

 

 

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