‘जुग जुग जियो’ : दो पीढ़ियों में जेनरेशन गैप और बदलती सोच में सामंजस्य बिठाते परिवार की कहानी
फिल्म ‘जुग जुग जियो’ रिव्यु :
दो जान-पहचान वाले युवा शादी करते हैं और नौबत पांच साल में ही तलाक की आ जाती है। दूसरा दंपती सीनियर है। ऊपर ऊपर सब ठीक चल रहा है। बेटी की शादी होने वाली है। लेकिन, पिता को अब भी प्यार की तलाश है। पत्नी उसका ख्याल तो रखती है लेकिन उसके साथ वह रोमांटिक नहीं हो पाता है। फिल्म ‘जुग जुग जियो’ एक तरह से धर्मा प्रोडक्शंस की ही 21 साल पहले रिलीज हुई फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ का न्यू मिलेनियल्स के लिए बना मॉडर्न संस्करण है। ये उस दौर की कहानी है जिसमें बाप को पटरी पर लाने के लिए बेटे को मैदान में उतरना होता है। मैदान में परिवार की तीन शादियां हैं। दो हो चुकी हैं, तीसरी होने वाली है। इस तीसरी शादी की तैयारियों के बीच ही घर की दो शादियों के तार बिखर रहे हैं। फिल्म ‘जुग जुग जियो’ तीनों शादियों को उलट पलट कर, बदल बदल कर अलग अलग नजरिये से परखती है।
ये है फिल्म की कहानी
फिल्म ‘जुग जुग जियो’ की कहानी शुरू होती है कनाडा से। कामयाबी की रफ्तार पर सवार नैना को अपनी ही कंपनी में बड़ा प्रमोशन मिला है और इसके लिए उसे अपने पति से दूर टोरंटो से न्यूयॉर्क जाना है। नैना और कुकू एक दूसरे को बचपन से जानते हैं। दोनों ने लव मैरिज की लेकिन शादी के पांच साल बाद ही दोनों का स्वाभिमान और अभिमान रिश्तों में दरार डाल देता है। कुकू की बहन गिन्नी की भारत में शादी तय हो चुकी है और दोनों अपना तलाक इस शादी के पूरे होने तक रोके रखने की कोशिश करते हैं। कुकू के पापा भीम का कुकू की टीचर रही मीरा से अफेयर चल रहा है और शराब के नशे में भीम ये बात बेटे को बता भी देता है। अपने तलाक की बात करने का मौका ढूंढ रहा बेटा अपने पिता की तलाक की तैयारियों की बात जानकर चौक जाता है। मां परिवार में हो रहे इन दोनों विपदाओं से अनजान है। बेटी भी सिर्फ परिवार की आन के लिए एक अनजान से शादी के लिए तैयार हो चुकी है जबकि प्यार वह एक ऐसे युवा से करती है जो संगीत की दुनिया में अपना वजूद तलाशने का संघर्ष कर रहा है।
निर्देशक राज मेहता ने अपनी पहली फिल्म ‘गुड न्यूज’ बनाई थी
निर्देशक राज मेहता ने धर्मा प्रोडक्शंस और यशराज फिल्म्स में दूसरे निर्देशकों की सहायकों के रूप में लंबा वक्त गुजारा और फिर तीन साल पहले अपनी पहली फिल्म बनाई ‘गुड न्यूज’। एक गंभीर विषय को हास्य के रस में पिरोकर कहानी कहने का उनका यही अंदाज फिल्म ‘जुग जुग जियो’ की शुरुआत में भी आगे बढ़ता दिखता है। इंटरवल तक यही लगता है कि राज मेहता विषय को ठीक से पकड़ नहीं पा रहे हैं। फिल्म के अलग अलग ट्रैक में उनका निर्देशन भटकता भी नजर आता है लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म की गाड़ी पटरी पर आ जाती है और दर्शकों को अपने साथ बांधना शुरू करती है। और, इसमें राज को मदद मिलती है अनिल कपूर और नीतू कपूर की दमदार अदाकारी से।
अनिल कपूर और नीतू कपूर ने बचाई फिल्म की डूबती नैया
जब भी फिल्म जरा सी भी कमजोर होती दिखती है, अनिल कपूर अपने अतरंगी किरदार से इसमें रंग भरते हैं। अपने अफेयर की पोल खुलने पर उनका बीमार पड़ने का ढोंग कहानी को संभालता है तो नीतू कपूर जब मीरा बनी टिस्का चोपड़ा के सामने अपने पति को ‘दान’ में देने वाले दृश्य में उनकी आदतों और परेशानियों की बात करती हैं तो फिल्म खिलने लगती है। फिल्म को इसके सहायक कलाकारों खासतौर से मनीष पॉल और प्राजक्ता कोली से भी काफी मदद मिलती है । गिन्नी का अपने माता पिता और भैया भाभी को आदर्श दंपती के खांचे में फिट न बैठ पाने के लिए लताड़ना फिल्म का हाईलाइट प्वाइंट है। और, मनीष पॉल ने अरसे से हिंदी सिनेमा में चली आ रही एक युवा हास्य कलाकार की कमी को पूरा करने की पूरी कोशिश की है।
वरुण के बार फिर लोट आये है अपनी अंदाज़ में, कियारा का करिश्मा देखने को मिलेगा
फिल्म ‘जुग जुग जियो’ की अंतर्धारा कुकू और नैना की प्रेम कहानी है। दोनों की शादी फिल्म की शुरुआत में ही हो जाती है। इसके बाद दोनों का पहले इस शादी से बाहर निकलने का और फिर इस शादी को बचाने का संघर्ष है। 35 के हो चुके वरुण धवन के लिए ये फिल्म सबसे कठिन चुनौती रही। पांच साल पहले आई फिल्म ‘जुड़वा 2’ के बाद से वरुण का करियर डगमगाता रहा है। ‘अक्टूबर’ और ‘सुई धागा’ जैसी फिल्मों में उनके अभिनय की तारीफें हुईं पर फिल्मों की कमाई नहीं हुई। फिर ‘कलंक’, ‘स्ट्रीट डांसर 3डी’ और ‘कुली नंबर वन’ में तो यूं लगा कि वह रेस से ही बाहर हो जाएंगे लेकिन फिल्म ‘जुग जुग जियो’ में अपनी मेहतन से वह फिर पटरी पर लौटते दिख रहे हैं। वरुण धवन ने मौके का बिल्कुल सही इस्तेमाल किया और अपना असर छोड़ने में सफल भी रहे। कियारा आडवाणी फिल्म दर फिल्म निखरती जा रही हैं।
संगीत सबसे कमजोर कड़ी
निर्माता करण जौहर ने फिल्म ‘जुग जुग जियो’ के लिए बिल्कुल सही कलाकारों का चुनाव किया है। फिल्म पर उनकी मेकिंग का असर भी दिखता है। वेशभूषा पर खूब खर्च किया गया है और बड़े परदे के लिए जरूरी हर दृश्यावली सजाने के लिए उन्होंने पैसे की कमी नहीं दिखने दी है। फिल्म ‘जुग जुग जियो’ की दिक्कतें इसके संगीत और इसके तकनीकी टीम में हैं। फिल्म के कम से कम तीन गाने रीमिक्स हैं। ‘नच पंजाबन’ पाकिस्तानी गायक अबरार उल हक के गाने का, ‘रंगीसारी’ शोभा गुर्टू की मशहूर ठुमरी का और ‘दुपट्टा’ भी बीती सदी के हिट पंजाबी गाने का रीमिक्स है। फिल्म ‘जुग जुग जियो’ संगीत को लेकर बहुत निराश करती है। जय पटेल की सिनमैटोग्राफी औसत दर्जे की है और मनीष मोरे का संपादन भी खास प्रभावित नहीं करता।
देखें कि न देखें
अपने पति के अफेयर की बात सुनकर गीता सैनी जब अपनी बहू नैना के साथ झील के किनारे वाइन पीने बैठती है तो पूरी फिल्म का सार यहां नीतू कपूर को मिले संवादों में सिमट आता है। ”अनजाने पुरुष के साथ ब्याह दी गई बेटियां दूसरे घर में प्यार की उम्मीद लेकर आती हैं। दोनों ठीक से पति पत्नी बन भी पाएं, उससे पहले ही दोनों माता पिता बन जाते हैं। फिर जब बच्चे बड़े होते हैं और दूर चले जाते हैं तो दोनों को फिर से पति पत्नी बनने का मौका मिलता है। लेकिन तब तक दोनों एक दूसरे की आदत बन चुके होते हैं। अब इंसान अच्छा हो या बुरा, लेकिन आदतें कहां छूट पाती हैं” यही फिल्म ‘जुग जुग जियो’ का सार है। फिल्म इसीलिए पारिवारिक मनोरंजन की कसौटी पर पास हो जाती है क्योंकि यहां मामला दो पीढ़ियों के जेनरेशन गैप के अलावा दो पीढ़ियों की बदलती सोच में सामंजस्य बिठाने का भी है। वीकएंड पर फैमिली आउटिंग के लिए फिल्म ठीक है।